भाग्यचक्र उज्जैन

भाग्यचक्र उज्जैन

उज्जैन तीर्थ स्थल के बारे में’

उज्जैन मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र मैं क्षिप्रा नदी के तट पर भारत वर्ष की धार्मिक, ऐतिहासिक तथा प्राचीनतम नगरी है| उज्जैन के प्राचीनतम नाम उज्जैयनी, अवंतिका, कुमुद्वती, अमरावती, कनकश्रन्गा आदि है| शास्त्रों एवं पुराणों में जो वर्णन है उसके अनुसार उज्जैन ५ हजार वर्षो से भी पुराना इतिहास रखता है|


जबसे मानव सभ्यता शुरू हुई है तब से ही उज्जैन तीर्थ के रूप मैं जाना जाता है, पुण्य सलिला क्षिप्रा नदी के दाहिने तट पर बसे इस नगर को भारत की मोक्षदायक सप्तपुरियों में एक माना गया है।

उज्जैन हिन्दू धर्म की सात पवित्र नगरियों में से एक है (अन्य छः नगरियाँ हैं – अयोध्या, वाराणसी, मथुरा, हरिद्वार, द्वारका तथा कांचीपुरम), यहाँ हिन्दुओं का पवित्र उत्सव कुम्भ मेला 12 वर्षों में एक बार लगता है| मान्यता है की समुन्द्र मंथन के समय अमृत की कुछ बूंदे क्षिप्रा नदी मैं गिरी थी जिसके कारण ही उज्जैन में कुम्भ का मेला लगता है|


भगवान् श्री कृष्ण ने अपने भ्राता बलराम तथा सखा सुदामा के साथ यहाँ के संदीपनी आश्रम गुरुकुल में अध्ययन किया था| यह हिन्दू समय-निर्धारण का केंद्र भी है, खगोलीय ग्रंथो के अनुसार मुख्य भूमध्य रेखा अथवा शुन्य देशांतर रेखा उज्जैन से गुजरती है, इसलिए समय की गणना उज्जैन में सूर्योदय के द्वारा की जाती है और तदनुसार, कैलेण्डर वर्ष के आरंभ ‘मकर संक्रांति’ तथा युग के प्रारंभ की गणना इससे की जाती है| उज्जैन में भगवान् शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग विद्यमान है| इस नगरी का पौराणिक तथा धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व सर्वज्ञात है| जिस स्थान पर महाकालेश्वर स्थित है वहीँ पर प्रथ्वी का नाभि स्थान है, बताया जाता है की यहीं पर पृथ्वी का केंद्र है|उज्जैन की पावन धरा पर ही माता के 51 शक्तिपीठों में से एक माँ हरसिद्धि का मंदिर भी स्थित है| ऐसी मान्यता है की संध्या आरती के पश्चात माँ हरसिद्धि साक्षात् यहीं विश्राम करती है|

 मोक्षदायक सप्तपुरियों में से एक इस नगर में 7 सागर तीर्थ, 84 महादेव , 8 अष्टभैरव, 9 नारायण तथा सैकड़ों देवताओं के मंदिर, जलकुंड तथा स्मारक है, ऐसा प्रतीत होता है की 33 करोड़ देवी देवताओं का निवास इस उज्जैन नगरी मैं ही है| जहॉं ब्रम्हाण्ड से मंगल ग्रह की सीधी किरणे कर्क रेखा पर स्थित स्वयंभू शिवलिंग के उपर पढती है

 

जिससे यह शिवलिंग मंगल ग्रह के प्रतीक स्वरूप में जाना जाता है तथा यहाँ पर पूजन, अभिषेक, जाप व दर्शन से मंगलदोष का निवारण होता है। उज्जैन मैं मोक्षदायनी क्षिप्रा के कारण ही यहाँ पर सिद्धनाथ पर पितृदोष की शांति, पितृओं का तर्पण होता है तथा कालसर्प दोश का निवारण भी होता है सम्पूर्ण विश्व में भारत देश के अंर्तगत मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में एक मात्र मंग्रल ग्रह का मंदिर है,।

उज्जैन के प्रमुख मंदिर एवं स्थान

सांदीपनि आश्रम (प्रभु श्री कृष्णा की क्षिक्षा स्थली)

ऋणमुक्तेश्वर मंदिर (ऋणमोचन हेतु पूजन स्थल )

चिंतामन गणेश मंदिर (सर्व चिंता निवारण हेतु )

त्रिवेणी नवग्रह शनि मंदिर (शनि देव की शांति हेतु)

भर्तहरि गुफा ( राजा भरथरी की आराधना का स्थान)

पाताल भैरवी (तांत्रिक सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी )

हरसिद्धि मंदिर (देवी शक्तिपीठ)

कालभैरव मंदिर (महाकाल के सेनापति )

मंगलनाथ मंदिर (मंगलदोष पूजन स्थल )

सिद्धनाथ मंदिर ( पितृदोष शांति )

रामघाट क्षिप्रा तट (कालसर्पदोष निवारण हेतु )

गढ़ कलिका मंदिर (कालिदास की आराध्य देवी)