भाग्यचक्र उज्जैन

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कालसर्प शांति

जब किसी जातक की जन्म कुंडली में राहु व केतु ग्रह के मध्य में अन्य समस्त ग्रह आ जाते हैं तो जातक की जन्मकुंडली में कालसर्प नामक दोष का निर्माण होता है कालसर्प दोष के कारणवश जातक को जीवन में कई प्रकार की समस्यों का सामना करना पड़ता है जैसे आर्थिक, शारीरिक, मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है साथ ही साथ इस दोष से पीड़ित जातक का जीवन अत्यधिक संघर्षमय हो जाता है। इस दोष के प्रभाव के कारण मनुष्य के जीवन में संघर्ष अत्यधिक बढ़ जाता है तथा मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जातक अपने लक्ष्य को पाते पाते कई बार असफल हो जाता है। कालसर्प योग के कई प्रकार है वराहमिहिर ने अपनी संहिता जानक नभ संयोग में इसका सर्प योग के नाम से उल्लेख किया है वहीं सारावली में भी सर्प योग का ही वर्णन मिलता है प्राचीन मूल वैदिक ज्योतिष शास्त्रों में कालसर्प दोष का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है परंतु आधुनिक ज्योतिष में कालसर्प दोष को पर्याप्त स्थान मिला हुआ है। कालसर्प दोष के प्रकार :- ज्योतिष शास्त्र में कालसर्प दोष के कई प्रकार बताए गए हैं परंतु उनमें से १२ प्रकार के कालसर्प दोष का मुख्य रूप से वर्णन मिलता है जिसमें १.अनंत २.वासुकी ३.शंखपाल ४.पद्यम ५.महापद्मा ६.तक्षक ७.कर्कोटक ८.शंखचूड़ ९.घातक १०.विषाक्त ११.शेषनाग १२.कुलिक है

                                   
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