भाग्यचक्र उज्जैन

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पूजा जानकारी

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पितृ दोष शांति

प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में पित्र दोष को अत्यधिक बड़ा दोष माना गया है इस दोष से पीड़ित जातक का जीवन अत्यंत कष्टदायक हो जाता है उनके परिवार में मांगलिक कार्यों में रुकावट आती है वंश वृद्धि में बाधा आती है, जीवन में आर्थिक समस्याएं बनी रहती है कोई ना कोई रोग उत्पत्ति चलती रहती है मांगलिक कार्य होने में समस्याएं आती है। अब जानते हैं कि जन्म कुंडली में कैसे बनता है पितृदोष, पितृदोष को जन्म कुंडली के अनुसार तथा जातक के जीवन के लक्षणों के अनुसार भी जाना जा सकता है ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि जातक/व्यक्ति की कुंडली में द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम और दशम भाव में सूर्य राहु की युति बने तो पितृदोष का निर्माण होता है पंचम, नवम स्थान में सूर्य अथवा चंद्रमा के साथ राहु होने से भी पितृदोष होता है पंचमेश अथवा नवमेश नीच राशि में हो या अशुभ भावों में हो अथवा राहु केतु आदि से संयुक्त हो तो भी पितृदोष होता है इनके अतिरिक्त अन्य और भी कारणों से पितृदोष निर्मित होता है। यदि राहु केतु सूर्य के साथ १० अंकों से कम दूरी पर स्थित हो तो दोष का प्रभाव बढ़ जाता है।पितृदोष के कारण जातक के जीवन में कई प्रकार की समस्याएं आती है जैसे विवाह में रुकावट या वैवाहिक जीवन में समस्या संतानोत्पत्ति में समस्या रोजगार आदि में समस्या ग्रह कलेश धन हानि आदि के कारण दुःख बना रहता है।

                                   
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